Sunday, October 6, 2013

संदूक

आँखें खुली ही है। अँधेरा ढल चुका होगा। भीतर की चरमर करती आवाज ने रात भर सोने नहीं दिया। करवटों को बार बार पलट कर खोजा पर कुछ मिला नहीं। रेत की बोरी की तरह रिसती हुई आँखों से खिड़की की और झाँका, क्या अँधेरा ढल चूका होगा? पर्दे हटाये। बगल के घर की दीवार पीठ दिखाकर खड़ी है। कभी यहाँ से सब कुछ दिखता था। अब ईटों से रास्ते बाँट कर कोई कैसे यूँ सो लेता है? अपना शोर दूसरों के घरों में छोड़कर? पर दीवार ने कुछ नहीं कहा। झुँझला कर पर्दे वापिस खींच कमरे में देखा, क्या अब यहाँ उम्मीद भी नहीं आती है? दरवाज़ा बंद है। ताले पर कुरची हुई जंग लग गयी है। कुछ घंटों में यह सवेरा जो दिखता नहीं ओझल हो जायेगा और रात फिर बिना बताये आ जाएगी। क्या रात क्या सुबह! मन की बड़बड़ में गुम पाँव कब जाकर पुरानी संदूक से टकराये पता नहीं चला। पर दर्द ने बता दिया। ठीक कमरे के बीचों बीच रखी हुई वह पुरानी संदूक। कई सालों से वही पर है, बस अन्दर झाँके ज़माना बीत गया है। पाँव पे लगी चोट को सहलाते हुए उसने एक हाथ से संदूक को खोला। कुछ पुरानी भूलों की मिट्टी है, उसपे फेके हुए पत्थरों का ढेर और छ: फुट खोदे हुए गड्ढों से बची हुई कुदाल। एक चाभी भी कोने में पड़ी है। दरवाजे की है। यह भी पुराने संदूक में रह गयी थी, पता ही नहीं चला। ताले में डाल करके ऐठा पर कुछ अटक सी गयी। शायद जोर ज्यादा लगा दिया होगा। हौले से घुमाया और दरवाज़ा खुल गया। बाहर झोल और धूल बैठी है। शायद भूल गयी होगी की किसी सुबह यहाँ भी दस्तक होगी। न जाने दरवाज़े को खुला देख उसके मन में क्या चला वह संदूक खींच कर बाहर निकल आई। संदूक भारी है, ज़िन्दगी में कुछ भूलना उसकी आदत जो नहीं रही। संदूक को घसीटने से धूल की परत ने एक लकीर में दम तोड़ दिया। उस लकीर से ज़मीन पर बिछा अभिमान झाँक रहा है। उससे कहने लगा कुछ कदम ही सही, तय तो किया। तेरा रास्ता तुझे खोजने कभी नहीं आया। तेरा रास्ता तो इस कमरे में बंद संदूक में इंतज़ार कर रहा है। अब बना ले इसे। मैं जानता हूँ थक के यहाँ लौटेगी, इसलिए इस धूल में तेरे पैरों के निशान छोड़ दिए है, इसे मत भूलना। इसे वापिस अपने संदूक में रख लेना जब रास्ता बन जाये, जब समय थोड़ा बीत जाये। अँधेरा ढल रहा है, अँधेरा फिर आएगा, पर अब सुबह भी आयेगी।      

- ख़ुफ़िया कातिल           

2 comments:

  1. This is such a beautiful, meaningful piece of writing. Each word carries with it a weight, that is felt once consumed. Thanks for writing this- even though it takes me long to read, it was a pleasure and there's a lot that has been absorbed.

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    1. Thanks for giving it a read. I am glad that you find meaning in it.

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