Monday, May 23, 2011

मैं क्या हूँ

बुनता एक जाल हूँ
सवालों का मलाल हूँ
अँधा गुलाल हूँ
घायल एक खाल हूँ

कतरों से जोड़ता ख्वाब हूँ
मूंदी आँखों से देता जवाब हूँ
डूबता सैलाब हूँ
हर रोज़ बर्बाद हूँ 

तसल्लियों का शिकार हूँ
खुद की ख़ुशी का करार हूँ
अपनी दफ़न का दरार हूँ
गिने गुनाहों का फरार हूँ

गीदड़ संत हूँ
अंत का दुरंत हूँ
एक स्तम्भ अनंत हूँ
तेर न्याय से परन्त हूँ

अनिर्वाहित भाव हूँ
लुप्त पड़ाव हूँ
थोपे चाशनी का घाँव हूँ
कर्ण कर्कश काँव हूँ 

पर्दों में लिप्त कोष हूँ
श्वेत दोष हूँ
धुंध लेप में होश हूँ
सर्द भस्म का आक्रोश हूँ

मैं क्या हूँ
एक नाम हूँ
काली शाम हूँ
ध्वस्त मुकाम हूँ
इसी में तमाम हूँ

Friday, May 13, 2011

मैं और मेरे कॉकरोच

उफ़ ये कॉकरोच 
हर रोज़ मरते 
पर फिर भी जीवित कॉकरोच 
रात की धुन्ध्लाहट के मोहताज 
कोने-कोने की छान बीन के सरताज
सूरज ढलने का इंतज़ार
और बत्तियां बुझने को तैयार
जहाँ मुड़ी आँखें
आ निकले ये धोखेबाज

अँधेरे में करते है खुसर पुसर
रौशनी में हो जाते है तितर बितर
छुप जाते है जैसे हो परछाईं 
चिपक जाते है बन कर काई
काले धब्बो से काली इनकी करतूत 
जमे बैठे है अरबो से ये यमदूत
अपने दो एंटीना से यह करते है वार्तालाप
देख के इनको महिलाओं के हो जाते है बाप बाप
पर यह धोखा किसी और को देना
चुन चुन मारूंगा तुम्हारी सेना
सताऊंगा तुम्हे मैं जहरीले गैस से
हिटलर ने भी नहीं मारा होगा ऐसे तैश में

पर मेरी बातें तुम्हे नहीं करती विचलित 
तुम प्रजनन करते हो प्रचलित
अंडे देते हो जैसे हो कोई मुफ्त उपहार
भारतीय होने के लक्षण है तुम में हज़ार
संख्या का मोल नहीं, अक्षरों में तोल नहीं
गली कूचे का क्या कहें, महलो में भी बोल रही
तुम से हैं हमारा भाईचारा  
जैसे पांडव और कौरवों का हो नज़ारा 
तुम सौ क्या, करोड़ों में आओ
कुरुक्षेत्र की भूमि समझ यहाँ मंडराओ 
पर अपने इस तुच्छ बुद्धि में बाँध लो गाँठ
मेरे चप्पल का नंबर है आठ
गिरेगी जब इस संख्या की गरज़ती गाज
दब जाओगे बनकर ख़ुफ़िया राज़

- ख़ुफ़िया कातिल की पेशक़श

Sunday, May 8, 2011

The dead dragon