Thursday, September 19, 2013

फिर से

वैसे तो तुम्हारी याद कोई तारीख देख कर नहीं आती है. जिस तरह धूल एक बंद घड़ी में रास्ता ढूँढ उसके पुर्जों पर बैठ जाती है, उसी तरह मेरी यादों के कस्बों में तुम्हारा आना जाना एक मुक्त घड़ी की ताल हो गयी है. कहने को तो टेबल पर एक तस्वीर मढ़ कर रखी है, पर अफ़सोस यह व्यस्तता उसे ओझल कर देती है. पर ख़ुशी इस बात की भी हैं कि अभी तस्वीरों का मोहताज नहीं हुआ हूँ, पर होने का डर जरूर है. आज फिर से अपने आप को किया हुआ वादा पूरा करने का प्रण किया है. यूँ तो खुद से हारने की आदत गयी नहीं है पर अपने आप को हर दिन खोता देखना भी रास नहीं आता. आज फिर से कुछ ठाना है, उम्मीद है इस बार निराश नहीं करूँगा, खुद को. तुम बस आते जाते रहना.  

1 comment:

  1. Ye pipal ka patta tumhare liye propeller, prernastrot hai jo tuhe kabhi bhi khud se harne nahi dega...

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