Friday, May 13, 2011

मैं और मेरे कॉकरोच

उफ़ ये कॉकरोच 
हर रोज़ मरते 
पर फिर भी जीवित कॉकरोच 
रात की धुन्ध्लाहट के मोहताज 
कोने-कोने की छान बीन के सरताज
सूरज ढलने का इंतज़ार
और बत्तियां बुझने को तैयार
जहाँ मुड़ी आँखें
आ निकले ये धोखेबाज

अँधेरे में करते है खुसर पुसर
रौशनी में हो जाते है तितर बितर
छुप जाते है जैसे हो परछाईं 
चिपक जाते है बन कर काई
काले धब्बो से काली इनकी करतूत 
जमे बैठे है अरबो से ये यमदूत
अपने दो एंटीना से यह करते है वार्तालाप
देख के इनको महिलाओं के हो जाते है बाप बाप
पर यह धोखा किसी और को देना
चुन चुन मारूंगा तुम्हारी सेना
सताऊंगा तुम्हे मैं जहरीले गैस से
हिटलर ने भी नहीं मारा होगा ऐसे तैश में

पर मेरी बातें तुम्हे नहीं करती विचलित 
तुम प्रजनन करते हो प्रचलित
अंडे देते हो जैसे हो कोई मुफ्त उपहार
भारतीय होने के लक्षण है तुम में हज़ार
संख्या का मोल नहीं, अक्षरों में तोल नहीं
गली कूचे का क्या कहें, महलो में भी बोल रही
तुम से हैं हमारा भाईचारा  
जैसे पांडव और कौरवों का हो नज़ारा 
तुम सौ क्या, करोड़ों में आओ
कुरुक्षेत्र की भूमि समझ यहाँ मंडराओ 
पर अपने इस तुच्छ बुद्धि में बाँध लो गाँठ
मेरे चप्पल का नंबर है आठ
गिरेगी जब इस संख्या की गरज़ती गाज
दब जाओगे बनकर ख़ुफ़िया राज़

- ख़ुफ़िया कातिल की पेशक़श

4 comments:

  1. oye teri toh... aapki toh ye khoobi hame bilkul hi maloom nahi thee! wah bhai

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  2. behetreen kaatilaana!
    tumne mujhe inspire kar diya hai.
    "cockroach ka katl" naam ki philum banaunga main ab, aur uska storyboard ek grahpic novel hoga.
    yus.

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  3. Wohi main kahun aajkal CockRoaches tere khilaaf saazish kyun kar rhe hian :P

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